अब तो लिखना ही होगा...
दोस्तों !
कक्षा 11 वीं पास होने के बाद मन में तीन सपने जागे थे. पहला नेतागीरी का, दूसरा वकालत और तीसरा पत्रकारिता का.
पहला सपना देखते ही मन ही मन TATA - BYE BYE कर दिया क्योंकि पल पल झूठ बोलने की कला न होने के कारण अपात्र श्रेणी में आ गया साथ ही अपात्र श्रेणी में आते आते वर्षों बीत रहे थे.
वहीं दूसरी ओर ज़िंदगी के ट्राफ़िक सिग्नल पर दूसरा सपना वकालत का काला कोट पहने हमारा इंतज़ार कर रहा था. फिर होना क्या था मैं और मेरा दूसरा सपना हम दोनों एक दिन दिमाग़ी Dating कर रहे थे तो ज्ञात हुआ कि इस सपने को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए इतने धाराएँ याद करने पड़ेंगी कि स्वयं के जीवन की धारा भूल जाएँगे. इसी डर से वकालत के सपने को 'जय राम जी की' कहते हुए आगे के रास्ते निकल पड़ा ।
जीवन के अब गंभीर मुहाने पर हम पहुँच गए जहां हमारा पत्रकारिता क्षेत्र के साथ Affair शुरू हो गया लेकिन भई यह Affair हमारा असली वाला इश्क़ बन गया और यह इश्क़ ठीक अंबुजा सीमेंट की तरह मज़बूत होता गया.
दरअसल, मेरे शुभचिंतक पिछले चार वर्षों से मुझे समझा रहे हैं कि, "अमा यार ! प्रांजल कुछ अख़बार पढ़ा करो और लिखा भी करो" लेकिन हम भी मनमौजी थे और उनकी बातों को हवा में उड़ा देते थे और भई क्यों ना उड़ाते ? ठेठ Digitalize youth जो थे, हमारे लिए ज्ञान का साधन YouTube, Twitter और Facebook जो था.
लेकिन कुछ महीनों से मेरे दिमाग़ में भरा हुआ भूसा ख़ाली हो रहा है और मुझे धीरे धीरे कुछ लिखने की चाह हो रही है.
तो आज से मैंने यह तय किया है कि, 'अब लिखना होगा !'
देश और समाज में हमारे जैसे युवा और नवजात पत्रकार की सोच का जागृत होना उतना ही अनिवार्य है जितना चाय में चायपत्ती और आंदोलन में मोमबत्ती !
आप सभी के आशीर्वाद और साथ को छिनने की प्रबल ईच्छाशक्ति रखते हुए Blog लिखने का श्री गणेश कर रहा हूँ ! 🙏🏻
इससे ज़्यादा गंध आज हम नहीं कर सकते. धन्यवाद !

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